Supreme Court Big Decision: उत्तर प्रदेश राज्य राजस्व संहिता के अनुसार वर्तमान में कृषि भूमि के मामले में शादीशुदा और अविवाहित बेटियों के बीच स्पष्ट भेदभाव किया जाता है। जब किसी पुरुष भूस्वामी की मृत्यु होती है तो उसकी संपत्ति का अधिकार सबसे पहले विधवा पत्नी और केवल अविवाहित बेटियों को मिलता है। शादीशुदा बेटियों को संपत्ति में अधिकार तभी मिलता है जब इन सभी प्राथमिक उत्तराधिकारियों की अनुपस्थिति में कोई और दावेदार न हो। यह व्यवस्था न केवल लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देती है। बल्कि सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों के भी विपरीत है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ऐसे दो प्रमुख राज्य हैं। जो विवाह की स्थिति के आधार पर बेटियों के संपत्ति अधिकारों में अंतर करते हैं।
राजस्व परिषद का प्रस्ताव
हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार उत्तर प्रदेश की राजस्व परिषद ने इस भेदभावपूर्ण व्यवस्था को समाप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण संशोधन का प्रस्ताव तैयार किया है। इस प्रस्तावित संशोधन में अविवाहित शब्द को हटाने की सिफारिश की गई है। यदि यह संशोधन सफलतापूर्वक पारित हो जाता है। तो शादीशुदा और अविवाहित दोनों प्रकार की बेटियों को पिता की कृषि संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त होंगे। यह प्रस्ताव अन्य राज्यों में पहले से लागू समान नीतियों के सकारात्मक अनुभवों के आधार पर तैयार किया गया है। राजस्व बोर्ड ने स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि जहां भी वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव मौजूद है। वहां समान बदलाव किए जाएंगे। यह कदम महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है।
केंद्रीय और राज्य कानूनों में अंतर
भारतीय संविधान में कृषि को राज्य सूची का विषय बनाया गया है। इसलिए राज्य सरकारों को कृषि भूमि संबंधी अपने स्वतंत्र कानून बनाने का अधिकार है। जबकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के संशोधन के बाद सभी प्रकार की संपत्ति में बेटियों को समान अधिकार दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश का राजस्व कोड इस मामले में अलग नियम बनाता रहा है। कई अन्य राज्यों में भी कृषि भूमि के मामले में महिलाओं को कम अधिकार प्राप्त हैं। यह परिस्थिति न केवल कानूनी जटिलता पैदा करती है। बल्कि सामाजिक न्याय के भी विपरीत है।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
शादीशुदा बेटियों को संपत्ति अधिकार प्रदान करना केवल एक कानूनी समानता का मुद्दा नहीं है। बल्कि यह व्यापक सामाजिक परिवर्तन का भी कारक है। संपत्ति का अधिकार महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है। उन्हें पारिवारिक व्यवस्था में बेहतर स्थिति दिलाता है। वर्तमान व्यवस्था में बेटियों के सामने शादी करने या संपत्ति में अधिकार पाने में से किसी एक को चुनने की स्थिति बन जाती है। यह न केवल अन्यायपूर्ण है। बल्कि बेटियों की जल्दी शादी को भी बढ़ावा देता है। नए कानूनी प्रावधान से महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। यह परिवर्तन विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
विरोधी तर्कों का विश्लेषण
इस बदलाव के विरोध में कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि शादीशुदा बेटियों को संपत्ति अधिकार देने से कृषि भूमि का विखंडन होगा। कुछ रूढ़िवादी लोग कहते हैं कि शादी के बाद बेटियां अपने पति के गांव चली जाती हैं। हालांकि यह तर्क न तो न्यायसंगत है और न ही तार्किक। यह दोहरा मापदंड पितृसत्तात्मक सोच का प्रतीक है। भूमि के अत्यधिक बंटवारे का डर भी निराधार है। कई राज्यों में यह व्यवस्था पहले से सफलतापूर्वक मौजूद है।
दीर्घकालिक परिणाम
उत्तर प्रदेश में होने वाला यह बदलाव अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणादायक मिसाल बन सकता है। यदि यह साहसिक कदम उठाया जाता है। तो अन्य राज्य सरकारों पर भी इसी दिशा में कार्य करने का दबाव बनेगा। यह परिवर्तन महिला सशक्तिकरण की दिशा में निर्णायक कदम होगा।
Disclaimer
यह लेख विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार किया गया है। प्रस्तावित संशोधन अभी विचाराधीन है। आधिकारिक रूप से पारित नहीं हुआ है। नवीनतम स्थिति के लिए कृपया संबंधित सरकारी कार्यालयों से संपर्क करें। विशिष्ट कानूनी सलाह के लिए योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श लें।